Thursday, November 22, 2018

पाकिस्तान के कराची में चीन के वाणिज्य दूतावास पर हमला

पाकिस्तान के कराची में क्लिफ़टन इलाक़े में स्थित चीनी वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले में दो पुलिसकर्मियों की मौत हो गई है और कम से कम एक व्यक्ति घायल हो गया है.

एक पाकिस्तानी टेलीविजन चैनल ने कहा है कि एक हमलावर की भी मौत हुई है. पुलिस का कहना है कि चीनी राजनयिक सुरक्षित हैं.

स्थानीय लोगों के अनुसार शुक्रवार की सुबह चीन के वाणिज्य दूतावास पर हमलावरों ने धमाका किया और उसके बाद फ़ायरिंग शुरू कर दी. वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत जवाबी कार्रवाई की.

लेकिन सोशल मीडिया पर हमले की तस्वीरें और वीडियो देखे जा सकते हैं. तस्वीरों में इमारतों से धुआं उठता हुआ दिख रहा है. कहा जा रहा है कि बंदूकधारी चीन के वाणिज्य दूतावास में घुसने की फिराक में हैं.

वाणिज्य दूतावास की तरफ़ जाने वाले सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी गई है.

कराची से बीबीसी संवाददाता रियाज़ सुहैल के अनुसार सिंध के पुलिस महानिरीक्षक ने इस बारे में रिपोर्ट मांगी है.

पाकिस्तान ने हालाँकि अभी तक इस हमले के बारे में कोई बयान जारी नहीं किया है.

अलगाववादी संगठन बलोच लिबरेशन आर्मी ने हमले की ज़िम्मेदारी ली है. संगठन के प्रवक्ता ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया कि इस हमले में उनके तीन साथी शामिल हैं और ये हमला चीन को सबक सिखाने के मकसद से किया गया है.

विधानसभा को इस उम्मीद में निलंबित रखा गया था कि शायद नई सरकार की संभावनाएं बनें. बुधवार को पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने संकेत दिया कि वे मिलकर सरकार बनाने के लिए तैयार हैं. फॉर्मूला ये था कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस महबूबा मुफ्ती को सरकार बनाने के लिए समर्थन देंगी.

जब महबूबा का ख़त जम्मू (सर्दियों में जम्मू-कश्मीर की राजधानी) स्थित राजभवन पहुँचा तो राजनीतिक गतिविधियों में अचानक से तेज़ी आ गई. एक घंटे बाद ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अपने संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए विधानसभा को भंग कर दिया. अभी इस विधानसभा का कार्यकाल दो साल से अधिक बचा हुआ था.

अब राज्यपाल की कार्रवाई को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. मीडिया में इस बात पर चर्चा हो रही है कि गवर्नर के इस क़दम से कैसे जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र कमज़ोर हुआ. सवाल और बहस अपनी जगह बरकरार हैं, लेकिन यहाँ ये समझना अधिक ज़रूरी है कि विधानसभा भंग करने का फ़ैसला इतनी जल्दी क्यों ले लिया गया, और तब क्यों नहीं जब कांग्रेस, पीडीडी और नेशनल कॉन्फ्रेंस पिछले चार महीनों से यही राग अलाप रही थीं.

Monday, November 12, 2018

公众在香港是否还能批评中国领导人

当我知道巴丢草会来香港展览时,心情兴奋又担忧。他那种红黑色画风别树一格,作品从不忌违,直接调侃中国的领导人,讽刺中国最根深柢固的政治问题,可能是他拥抱一种热爱中国的情怀,也曾经在大陆生活,他的体会是一般在香港成长的艺术家所缺乏,能够更贴近地直斥其非。

然而,他的展览能否顺利举行充满问号,从铜锣湾书店事件中看得出来,如果正面批判领导人,现在是会有相当大的风险和后果。

结果一如所料,主办单位称收到中方威胁,以“安全理由”取消。是的,目前主办单位没有透露具体威胁是甚么,甚至有些人会怀疑是巴丢草和主办单位过份敏感,质疑这个威胁是否存在。但客观上来看,就意味着香港人,也许无法再在香港看到不经审查下讽刺中国时政或是中国领导人习近平的艺术品。

新闻自由低气压 红线飘移
巴丢草不是近期唯一的“受害者”,英国《金融时报》编辑马凯,疑因在外国记者会邀请有“港独”主张的民族党召集人陈浩天演讲,结果工作签证被拒,连入境也被禁。

马凯不是一个政客、不是任何议题的倡议者,他是一个在香港工作多年的外国记者,把香港的故事带到国际社会,但因为一场“中方不能接受”的演说,让他不能再踏足这个城市。这条“红线”并没有充分清晰的法律基础,马凯所属的外国记者会是在8月邀请陈浩天演讲,当时正正是港府有意以国家安全理由取缔民族党之时,但事实上,要到9月,即演讲后一个月,民族党才被港府列为“非法社团”,所以按“法律”,马凯并没有违法。

也许正因无法名正言顺将马凯绳之于“法”,中方或港府始终无就马凯不获续发签证和被拒入境提出清晰理据,只是笼统地说每宗个案都依法处理。建制派尝试为政府护航,质疑马凯怀有政治目的抵港,而非单纯的“旅客”,但这些转移视线的技俩,难以说服外界——在香港从事记者长达7年的记者如何一朝变成有“政治目的”?特区政府原本发给他的政府总部记者证要到2020年才到期,当初又是如何评估他的留港目的?

所以更多人会把政府做法,解读成一种当权者对一众外国记者的警告:“你勿来香港报道港独。”马凯就成为了这场风暴的第一只代罪羔羊,倘若外国记者无视警告,这类的强硬手段恐怕陆续有来。

值得一提的是,当民族党被视作“非法社团”后,任何人如果为该党“给予援助”,都可能被视为违法,不少传媒担心,采访陈浩天,也可能被视作提供平台宣扬民族党而卷入官非,香港记者协会也一度表达关注。香港记者报道要思前想后,外国记者亦要顾虑入境及逗留风险,来进行报道或是与个别团体和人士接触,这种新闻自由的气压之低实属前所未见,难免令人问一句,香港与大陆到底有哪里不一样?

'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां...' लिखने वाले अल्लामा इक़बाल और इमा की प्रेम कहानी

"मेरी बहुत बड़ी ख़्वाहिश है कि मैं दोबारा आपसे बात कर सकूं और आपको देख सकूं, लेकिन मैं नहीं जानता क्या करूं. जो व्यक्ति आपसे दोस्ती कर चुका हो उस के लिए मुमकिन नहीं कि वह आपके बग़ैर जी सके. जो कुछ मैंने लिखा है कृपया करके उसके लिए मुझे माफ कर दें."

जर्मन भाषा में लिखी गई अल्लामा इक़बाल की कई चिट्ठियों में से ये एक ख़त में बयां किए उनके जज्बात हैं.

इमा से इक़बाल की मुलाक़ात नीकर नदी के किनारे मौजूद हरे-भरे मनमोहक दृश्य वाले हाइडलबर्ग शहर में हुई थी.

एक तो मौसम ही कुछ ऐसा था और ऊपर से इक़बाल की जवानी और फिर सौम्य और सुंदर इमा. इसमें कोई हैरत की बात नहीं कि एक हिंदुस्तानी शायर का दिल उनके ऊपर आ गया, न आता तो आश्चर्य होता.

इक़बाल की नज़्म, 'एक शाम' (हाइडलबर्ग में नीकर नदी के किनारे पर) से उनके अहसासों का पता मिलता है.

इक़बाल के दिल में इमा की क्या जगह थी और इनका इमा से कैसा रिश्ता था, इसका कुछ अंदाजा इस ख़त से लगाया जा सकता है.

"कृपया करके अपने इस दोस्त को मत भूलिये, जो हमेशा आपको अपने दिल में रखता है और जो आप को भूल नहीं सकता. हाइडलबर्ग में मेरा ठहरना एक सुंदर सपना सा लगता है और मैं इस सपने को दोहराना चाहता हूं. क्या ये मुमकिन है? आप अच्छी तरह जानती हैं."

इन ख़तों से इक़बाल की छवि उन पारंपरिक अवधारणाओं बिलकुल अलग हमारे सामने आती है जो हम शुरू से ही अपने पाठ्य-पुस्तकों और इक़बाल की जयंती या पुण्यतिथि पर दिए जाने वाले भाषणों में देखते रहे हैं.

इन चिट्ठियों में अल्लामा इक़बाल 'हकीमुल उम्मत' (राष्ट्र का उद्धारक) और 'मुफ़क्किर-ए-पाकिस्तान' (पाकिस्तान का चिंतक) कम और इश्क़ के एहसास से लबरेज़ नौजवान अधिक नजर आते हैं.

21 जनवरी 1908 को इक़बाल ने लंदन से इमा के नाम एक ख़त में लिखा,

"मैं ये समझा कि आप मेरे साथ आगे और ख़तो किताबत (पत्र व्यवहार) नहीं करना चाहतीं और इस बात से मुझे बड़ा अफसोस हुआ. अब फिर आपकी चिट्ठी मिली है जिससे बहुत ख़ुशी मिली है. मैं हमेशा आपके बारे में सोचता रहता हूं और मेरा दिल हमेशा ख़ूबसूरत ख्यालों से भरा रहता है. एक चिंगारी से शोला उठता है. और एक शोले से एक बड़ा अलाव रोशन हो जाता है. आप में दया-भाव, करुणा नहीं है, आप नासमझ हैं. आप जो जी में आए कीजिए, मैं कुछ न कहूंगा, सदा धैर्यवान और कृतज्ञ रहूंगा."

इक़बाल उस समय न केवल शादीशुदा थे बल्कि दो बच्चों के बाप भी बन चुके थे.

ये अलग बात है कि कमसिन उम्र में मां-बाप की पसंद से करीम बीबी से होने वाली इस शादी से वे बेहद नाखुश थे.

एक खत में उन्होंने लिखा, "मैंने अपने वालिद साहब को लिख दिया है कि इन्हें मेरी शादी तय करने का कोई हक़ नहीं था, खासकर जबकि मैंने पहले ही इस तरह के किसी बंधन में पड़ने से इनकार कर दिया था. मैं उसे खर्च देने को तैयार हूं लेकिन लेकिन उसको साथ रखकर अपनी जिंदगी बर्बाद करने के लिए बिलकुल ही तैयार नहीं हूं. एक इंसान की तरह मुझे भी ख़ुश रहने का हक़ हासिल है. अगर समाज या कुदरत मुझे ये हक़ देने से इनकार करते हैं तो मैं दोनों का बाग़ी हूं. अब केवल एक ही उपाय है कि मैं हमेशा के लिए इस अभागे देश से चला जाऊँ या फिर शराब में पनाह लूं जिससे ख़ुदकुशी आसान हो जाती है."

ब्रिटेन पहुंच कर, पूरब के रहस्यपूर्ण और जादुई समाज में पले-बढ़े, अत्यधिक मेधावी इक़बाल ने महिलाओं का ध्यान चुंबक की तरह अपनी ओर खींच लिया.

इस समय तक इनकी कविताएं उत्तर भारत में हर जगह मशहूर हो चुकी थीं और लोग गलियों में इसे गाते फिरते थे, और इस ख्याति का कुछ-कुछ चर्चा इंग्लिस्तान भी पहुंच चुका था.